Chapter 1, Shloka 16 to 18
अध्याय 1 श्लोक 16 - 18
अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः |
नकुलः सहदेवश्र्च सुघोषमणिपुष्पकौ || १६ ||
काश्यश्र्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः |
धृष्टद्युम्नो विराटश्र्च सात्यकिश्र्चापराजितः || १७ ||
द्रुपदो द्रौपदेयाश्र्च सर्वशः पृथिवीपते |
सौभद्रश्र्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक्पृथक् || १८ ||
कुंतीपुत्र युधिष्ठीर राजाने अनंतविजय, नकुल व सहदेव ह्यांनी सुघोष व मणिपुष्पक नावाचे शंख वाजविले.
तसेच धनर्धुर काशीराज, महारथी शिखंडी, धुष्टदृम्न विराट, अपराजित सात्यकी ( यांनी देखील आपापले शंख वाजविले).
हे राजा, द्रुपद, द्रूपदीचे पाच पुत्र आणि आजानुबाहू सुभद्र, या सर्वानी सर्वबाजूनी आपापले वेगवेगळे शंख फुंकले.
The son Kunti, Yudhishtira blew his Anantvijaya;
Nakul & Sahadev blew their Sughosha & Manipushapk.
The great archer Kashi-king,
great warrior Shikhandi, Dhraishtadyumna, Virat & undefeated Satyaki.
O lord; Drupada &
Son of Drupada, as well as mighty armed Saubhadra blew their conches each &
every one all together.
हे राजन्! कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अपना अनन्तविजय नामक शंख बजाया तथा नकुल और सहदेव ने सुघोष एवं मणिपुष्पक शंख बजाये | महान धनुर्धर काशीराज, परम योद्धा शिखण्डी, धृष्टद्युम्न, विराट, अजेय सात्यकि, द्रुपद, द्रौपदी के पुत्र तथा सुभद्रा के महाबाहु पुत्र आदि सबों में अपने-अपने शंख बजाये |

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